प्रतापगढ़ जिले में एक सनसनीखेज मामला सामने आया है जहां एक युवक की पुलिस हिरासत के बाद तबीयत बिगड़ने से मौत हो गई। यह घटना न सिर्फ कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े करती है, बल्कि पुलिस कार्यशैली और मानवाधिकारों पर भी गंभीर चिंतन की मांग करती है।
📌 घटना की शुरुआत: 11 अप्रैल की शाम
मृतक अजय जाट (33), को 11 अप्रैल की शाम करीब 5 बजे सुभाष चौक से गिरफ्तार किया गया था। परिजनों के अनुसार, गिरफ्तारी के समय कोई अरेस्ट मेमो या नोटिस नहीं दिखाया गया। अजय उस समय घर पर अकेला था और परिवार किसी कार्यक्रम में गया हुआ था।
🕵️ रिश्वतखोरी और मारपीट के आरोप
अगली सुबह, परिजनों को थाने बुलाया गया। वहां एएसआई रामावतार ने अजय को छोड़ने के बदले 5000 रुपए की रिश्वत की मांग की। जब पैसा नहीं दिया गया, तो अजय के साथ मारपीट की गई।
अजय ने खुद परिजनों को बताया कि पुलिस ने सीने पर लात मारी, जिससे उसे सांस लेने में तकलीफ होने लगी। इसके बावजूद उसे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया।
🏥 तबीयत बिगड़ने के बाद इलाज में लापरवाही
12 अप्रैल की शाम को अजय की हालत बिगड़ गई और उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया। मगर परिजनों का आरोप है कि उन्हें इसकी कोई सूचना नहीं दी गई, न ही इलाज की प्रक्रिया में शामिल किया गया।
13 अप्रैल को दोपहर करीब 3-4 बजे के बीच, इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। इससे पहले परिवार को न तो कोर्ट में पेशी की खबर दी गई, न अस्पताल में भर्ती की सूचना।
🧊 शव सीधे मॉर्च्युरी पहुंचाया गया
जब तक परिजनों को अजय की मौत की जानकारी मिली, उसका शव मॉर्च्युरी में रख दिया गया था। परिवार का आरोप है कि इस पूरे मामले में पुलिस और प्रशासन मिलीभगत से काम कर रहे हैं और सच्चाई को छिपाने की कोशिश की जा रही है।
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📜 परिजनों की मांगें
अजय के परिवार ने मुख्यमंत्री, डीजीपी और जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंपकर न्यायिक जांच की मांग की है। उनकी मुख्य मांगें इस प्रकार हैं:
- ✅ पोस्टमॉर्टम मेडिकल बोर्ड से करवाया जाए।
- ✅ दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए।
- ✅ मृतक की पत्नी और बच्चों को ₹1 करोड़ की आर्थिक सहायता दी जाए।
- ✅ पूरे मामले की निष्पक्ष और पारदर्शी जांच कराई जाए।
🚨 क्या कहता है कानून?
इस मामले में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या पुलिस को बिना अरेस्ट मेमो और नोटिस के किसी को गिरफ्तार करने का अधिकार है?
भारतीय संविधान और आर्म्स एक्ट की धारा के अनुसार, गिरफ्तारी की प्रक्रिया पारदर्शी होनी चाहिए और परिवार को पूरी जानकारी दी जानी चाहिए।
📢 निष्पक्ष जांच की जरूरत
डीएसपी गजेंद्र सिंह ने बताया कि अजय जाट की 13 अप्रैल को न्यायिक हिरासत के दौरान मौत हुई और मामले की निष्पक्ष जांच की जाएगी। लेकिन जब परिवार का भरोसा तंत्र से उठ जाए, तब जांच की पारदर्शिता भी सवालों के घेरे में आ जाती है।
🔍 निष्कर्ष: सवालों से भरा एक जवाब मांगता केस
यह घटना न सिर्फ एक व्यक्ति की मौत है, बल्कि यह सिस्टम की असंवेदनशीलता का प्रतीक है।
अगर सही समय पर मेडिकल सुविधा दी जाती, अगर परिवार को सूचना मिलती, और अगर गिरफ्तारी कानूनी प्रक्रिया के तहत होती — तो शायद अजय जाट आज ज़िंदा होते।
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